भक्ति : -
भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह ईश्वर के प्रति समर्पण, श्रद्धा और प्रेम की भावना है। भक्ति का अर्थ केवल धार्मिक पूजा-अर्चना नहीं है, बल्कि यह उस आंतरिक भावना का प्रतीक है जो व्यक्ति को ईश्वर के साथ जोड़ता है। भारतीय धर्मों में भक्ति को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, चाहे वह हिंदू धर्म हो, सिख धर्म हो, जैन धर्म हो या बौद्ध धर्म। भक्ति की अवधारणा केवल भगवान की पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान का भी साधन है।
भक्तिमार्ग में व्यक्ति अपने अहंकार को त्यागकर ईश्वर की शरण में जाता है और उसे अपना सर्वस्व मानता है। भक्ति के माध्यम से व्यक्ति ईश्वर के प्रति न केवल अपने प्रेम और आस्था को व्यक्त करता है, बल्कि अपनी जीवन यात्रा को भी सही दिशा में ले जाता है। गीता में भगवान कृष्ण ने भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का सरल और सहज मार्ग बताया है। तुलसीदास, मीराबाई, कबीर जैसे संतों ने भी भक्ति को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य माना है। भक्ति में विश्वास रखने वाला व्यक्ति हर परिस्थिति में ईश्वर का स्मरण करता है और उसे अपने जीवन का मार्गदर्शक मानता है। इस प्रकार भक्ति व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है, बल्कि उसे जीवन के संघर्षों से भी लड़ने की शक्ति देती है।
श्री देवेंद्र गिरी जी महाराज अवधूत
श्री अवधूत भजन संग्रह